Saturday, May 29, 2021


Sunday, August 19, 2018

"मेरे पीछे आना नइ"


लिखना मेरी थांती नइ, लिखना मेरी भांति नइ,
मैं लिखता हूं ज्वालाओं से, कलम मुझे सुहाती नइ।

झंझावात की स्याही मेरी, चले लेखनी अंधड़ जैसी,
पहन के टोपी तुम घमंड की, मेरे साथ में चलना नइ।

पानी हिमखंडो से पीता और निवाला अग्निशिखर से,
अंतर्विरोध का शब्दकोश हूं, मैं प्रश्नों से डरता नइ।

कुलदीपक हो खरे उतरना, साफ बात के परे उतरना,
शहद बुझे जग की बातों में, गिरना और तड़पना नइ।

साथ मेरे यह सोच के आना, इस फकीर का नहीं ठिकाना,
मंजिल ढूंढ़ रहे हो गर तुम, मेरे पीछे चलना नइ ।

Wednesday, May 9, 2018

खून ने राह पकड़ ली है अब सियासत की,
ज़ख्म में दर्द तो देता है पर निकलता नहीं।