लिखना मेरी थांती नइ, लिखना मेरी भांति नइ,
मैं लिखता हूं ज्वालाओं से, कलम मुझे सुहाती नइ।
झंझावात की स्याही मेरी, चले लेखनी अंधड़ जैसी,
पहन के टोपी तुम घमंड की, मेरे साथ में चलना नइ।
पानी हिमखंडो से पीता और निवाला अग्निशिखर से,
अंतर्विरोध का शब्दकोश हूं, मैं प्रश्नों से डरता नइ।
कुलदीपक हो खरे उतरना, साफ बात के परे उतरना,
शहद बुझे जग की बातों में, गिरना और तड़पना नइ।
साथ मेरे यह सोच के आना, इस फकीर का नहीं ठिकाना,
मंजिल ढूंढ़ रहे हो गर तुम, मेरे पीछे चलना नइ ।
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