एक नाले के तलहटी से, उभरता और डूबता,
खेलता गंदी बस्तियों के कीचड़ भरे, बदबूदार पानी से,
एक टुकड़ा इंसानी जज्बात का, पानी से भीगा हुआ,
गुजरा मेरे काफी करीब से, और बोला लजाकर,
ये न समझना मैं यूं ही जा रहा हूँ,
ये तो बम्बई की बारिश है................
राजेश अमरनाथ पाण्डेय
२२-०१-१९९४
2 comments:
मुंबई की बारिश का चित्रण .. हमने तो देखी ही नहीं अबतक .. पर कमोबेश सभी शहरों की बारिश का यही हाल रहता है .. रचना अच्छी लगी !!
बेहतर अहसास है इंसान का।
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