Wednesday, December 23, 2009

सफ़ेद आवाज

सफ़ेद आवाज


रात के खामोशियों में, इक अकेली सी चीखने की आवाज़,
मेरे जहन के तीसरे कोने तक, समंदर के लहरों सी पसर गयी,
टकराई धूल और धूएं से भरे, कानो के फटे हुए पर्दों से,
ललाई हुयी आँखों में धुंए सी घुसी और आंसू ले आई.
उन आंसू के नकली शहरी मोतियों में, धूल और धुंए के चिंतित कण,
काले मोतियों सी रात के अँधेरे में, चमकी आँखों के किनारों पर और ढुलक गयी,
जानते हों क्यों???
क्यों की एक और मिल मजदूर की पत्नी को,
समाज की काली घूरती आँखें,
श्वेत वस्त्र धारण करने को.........विवश कर गयीं.

राजेश  अमरनाथ पाण्डेय
०१-०२-१९९४

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