Friday, December 25, 2009

चट्टान से मिटटी

चट्टान से मिटटी

पत्थर से टकरा कर सर हर लहर लौट जाती है,
क्यों कि निकलतीं  हैं सागर के छिछले जल से,
किन्तु चक्रवात आकर बहा ले जाता उसी चट्टान को,
क्योंकि निकलता है महासागर के गंभीर ह्रदय से,

तुम चट्टान ह़ो वही, निर्मम, कठोर, सर फोडती ह़ो लहरों का,
मैं जानता हूँ उसी पत्थर से बनेगी रेत, सौम्य चांदी सी,
ये भी जानता हूँ खड़ी ह़ो किनारे पर तूफ़ान के इंतजार में,
मैं बनूँगा चक्रवात और तुम्हें बनाऊंगा, चट्टान से मिटटी...
राजेश अमरनाथ पाण्डेय
१०-१०-१९९५

1 comment:

Udan Tashtari said...

ये भी जानता हूँ खड़ी ह़ो किनारे पर तूफ़ान के इंतजार में,
मैं बनूँगा चक्रवात और तुम्हें बनाऊंगा, चट्टान से मिटटी...

-बहुत उम्दा!