देश के विकास में उत्तर प्रदेश और बिहार के श्रमशक्ति का खासा योगदान है। फिर भी अपने ही देश में ये लोग ' अपनों ' द्वारा उपेक्षा और तिरस्कार झेलने को मजबूर हैं। हाल के सालों में भाषा के नाम पर मुंबई और असम में इनके खिलाफ हुए अत्याचार को शायद बताने की जरूरत नहीं। ऐसे में रोटी की तलाश में राजधानी आए बिहार - यूपी के लोगों के प्रति मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का यह बयान कि इनको वापस भेजने का हमारे पास कानून नहीं है , दुर्भाग्यपूर्ण है।
बेहतरी की कोशिश मनुष्य को कौन कहे , जानवर तक करते हैं। असंतुलित विकास के कारण आज रोजगार के अवसर चंद शहरों तक सिमटते जा रहे हैं। ऐसे में आधुनिक विकास की दौर में पिछड़े बिहार - यूपी के लोगों का ' रोटी ' की तलाश में दिल्ली जैसे शहरों में आना स्वाभाविक है। बिहार - यूपीवासी दिल्ली जैसे शहरों में आकर उसके विकास में मदद करते हैं। हां , इनके आने से कुछ समस्याएं भी पैदा होती हैं जिन्हें दूर करने की जवाबदेही सरकार की है। सीएम शीला ने समस्याओं को दूर न कर इन्हें वापस भेजने के लिए कानून की तलाश शुरू कर दी। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के सीएम के इस गैरजिम्मेदार बयान से न सिर्फ बिहार - यूपी के लोग आहत हुए हैं , बल्कि यह राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए भी खतरनाक है।
अब सवाल उठता है कि दिल्ली की समस्याओं के लिए बिहार - यूपी के लोग जिम्मेदार हैं या सरकार ? राजधानी में भीड़ नहीं बढ़े, इसके लिए जरूरी है कि देश का संतुलित विकास हो। विकास कुछ शहरों तक नहीं सिमटे। इन सारी समस्याओं के जड़ में संतुलित विकास का नहीं होना है। एक तरफ पिछड़े क्षेत्रों की दुश्वारियां रहती हैं , तो दूसरी ओर विकसित शहरों की सुविधाएं। ऐसे में दिल्ली जैसे शहरों में रोजी - रोटी की तलाश में लोग बरबस खींचे चले आते हैं। इसके लिए दोषी यूपी - बिहार जैसे पिछड़े क्षेत्रों के लोग नहीं , सरकारी नीतियां हैं। मुख्यमंत्री शीला को बिहार - यूपी के लोगों को वापस भेजने के लिए कानून न होने पर अफसोस नहीं जाहिर करना चाहिए , बल्कि लोगों की मजबूरियों को समझते हुए देश के संतुलित विकास के लिए पहल करनी चाहिए।
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