Tuesday, May 13, 2008

नीम के विविध उपयोग

१. लकड़ी रूप में
१५ -२० वर्षों के एक सुडौल नीम वृक्ष के तने की लम्बाई करीब ३ मीटर और घेरा डेढ़ मीटर तक होती है। इसे चीरने पर ऊपरी भाग भूरे रंग का सफेद और भीतरी भाग लाल भूरा दिखता है। इसके रेशे गठे हुए ,मजबूत और टिकाऊ के साथ सुगंधित होते हैं। इसमें कीड़े और फंुगी नही लगते। नीम की लकड़ी में सागौन के गुण व क्षमता होती है। दरवाजे के बाहर लगाने पर भी यह टिकाऊ होती है। हाथ या मशीन से भी इसे चीरना आसान होता है। अन्य वृक्षों की अपेक्षा इसमें वजन, आघात सहने की क्षमता, सतह का कड़ापन और काँटा पकड़ने की योग्यता अधिक होती है और इसको चीरने से ज्यादा नुकसान नहीं होता। इस पर नक्कासी बढ़िया होती है,किन्तु पालिश नहीं जमती। इस वृक्ष की लकड़ी का उपयोग भवन के सहतीर, कड़ी, दरवाजा, खिड़की, फ्रेम, खम्भा तथा फर्नीचर, कृषि उपकरण, नाव, जहाज, बैलगाड़ी, चक्के का धूरा, नौका-पतवार, तेल मिल, चुरूट के डिब्बे, मूर्तियाँ, खिलौने, ढोल का कनखा इत्यादि के निर्माण में होता है।

२. जलावन के रूप में
नीम की लकड़ी जलावन के काम में भी आती है, किन्तु यह धुँआ अधिक देती है। एक पचास वर्ष के नीम वृक्ष से करीब ५१ किलोग्राम जलावन की लकड़ी निकलती है। पश्चिमी अफ्रीकी देशों में नीम के डाल तथा चिराई के बाद निकले छाँट आदि काष्ठ कोयला बनाने के काम आते हैं, जिसकी जलावन के रूप में वहाँ काफी माँग होती है। हैती में बड़े पैमाने पर नीम वृक्ष जलावन की लकड़ी, छाया और भू-क्षरण रोकने के उद्देश्य से ही लगाये गये हैं। उत्तरी नाइजेरिया, कैमरुन तथा सूडान में नीम वृक्ष का इमारती लकड़ी तथा जलावन की लकड़ी के उद्देश्य से वानकीकरण किया गया है। नाइजेरिया के सोकोरो प्रान्त में १९३० में नीम वृक्ष लगाये गये थे। वहाँ जलावन तथा इमारती लकड़ी के अभाव की पूर्ति में यह वृक्ष 'इस सदी का सबसे बड़ा वरदान (Greatest Boon of the Century) साबित हुआ है। भारत के गाँवों में भी जलावन की लकड़ी की समस्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। शहरों में गैस, किरोसिन, कोयला, बिजली, सौर-उर्जा आदि के उपयोग के बावजूद हर साल करीब २ करोड़ टन लकड़ी की माँग बनी रहती है। नीम वृक्ष इस अभाव की पूर्ति में सहायक सिद्ध हो सकता है।

३. दातवन के रूप में
बनस्पति जगत् में उपलब्ध वृक्षों में दातवन के रूप में नीम की टहनी का ही सर्वाधिक उपयोग होता है, क्योंकि उसमें कीटनाशक गुण अधिक है और वह दाँत एवं मुख में होने वाले रोगों को नष्ट करने में सर्वाधिक सक्षम है। नीम टहनी का ब्रश और चीरा भी बढ़िया बनता है। उसके उपयोग से मसूड़े मजबूत होते हैं, दाँत चमकीले बने रहते हैं। बचपन से ही नीम दातवन का नियमित सेवन करते रहने वाले लोगों के दाँत अस्सी वर्ष की उम्र में भी मजबूत पाये जाते हैं। भारत के ग्राम्यांचलों में आज भी एक बहुत बड़ी आबादी नीम दातवन का ही प्रयोग करती है। बहुत से लोगों ने इसी प्रयोजन से अपने दरवाजे पर नीम वृक्ष लगा रखा है। हालाँकि गाँवों में भी कृत्रिम टूथपेस्ट एवं ब्रश का प्रचलन काफी बढ़ गया है और मंजन के नाम पर तमाम तरह के नशीले पदार्थ गुल आदि चल पड़े हैं, जबकि इनकी अपेक्षा नीम दातवन सस्ता और स्वास्थ्य के लिए सर्वोत्तम प्राकृतिक मंजन व ब्रश है। इधर शहरों में तथा रेलवे स्टेशनों पर नीम दातवन की बहुतायत उपलब्धता को देखकर ऐसा लगता है कि प्रबुद्ध लोगों का कृत्रिम संसाधनों के बजाय नीम जैसे प्राकृतिक व गुणकारी दंत ब्रश की ओर तेजी से झुकाव बढ़ा है। बाजार में कोई भी टूथपेस्ट १०/- रुपये से कम का नहीं और एक अच्छा टूथब्रश भी २० रुपये से कम में नहीं मिलता। एक व्यक्ति के उपयोग करने पर एक टूथपेस्ट करीब एक महीना और एक ब्रश लगभग तीन महीना चलता है। इस तरह सिर्फ दंत-धवन के लिए ही एक व्यक्ति को महीने प्राय: में १६-१७ रुपये व्यय करने पड़ते हैं, जबकि नीम दातवन पर लगभग ७-८ रुपये खर्च आता है। अन्तर यह भी है कि एक कृत्रिम ब्रश का उपयोग बार-बार किया जाता है, जिससे उसमें शुद्धता नहीं रह जाती, जबकि नीम दातवन का दुबारा उपयोग नहीं किया जाता, दाँत-जीभ साफ कीजिए और फेंकिये, उसे दुबारा उपयोग के लिए धोने व रखने की झंझट नहीं।सिंथेटिक पेस्ट के रसायन तथा ब्रश का प्रयोग दाँत व मसूड़े के लिए हानिकारक भी पाये जाते हैं। नीम दातवन करने से चित्त प्रसन्न रहता है, क्षुधा तीव्र होती है और मुख से दुर्गन्ध नहीं आती। नीम टहनी दातवन के रूप में एशिया तथा अफ्रीका के देशों में उपयोग किया जाता है। इधर नीम रस से टूथपेस्ट भी बनाये जाने लगे हैं।

४. मधुमक्खी पालन में
४.१ नीम के फूलों से पराग चुनकर मधुमक्खियाँ मधु तैयार करती हैं। कुछ तिक्तता के बावजूद यह मधु स्वास्थ्य के लिए एक सर्वोत्तम टॉनिक है। गर्मी के दिनों में जब आहार की कमी हो जाती है, उस समय नीम के फूल ही मधुमक्खियों को बचाये रखने में सहायक होते हैं। बाजार में नीम मधु एक दुर्लभ चीज है, ऊँची कीमत देने पर भी यह जल्दी नहीं मिलती। नीम वृक्ष की अधिकता वाले क्षेत्र में ही नीम मधु तैयार होते हैं।
४.२ नीम का फूल हल्का हरापन लिए श्वेत और चमेली की तरह भीना सुगंध वाला गुच्छेदार होता है। इसमें द्राक्षा (Glucocide), निम्बोस्ट्रीन तथा तीक्ष्ण गंध वाले तेल एवं वसा अम्ल पाये जाते हैं। इसका अर्क उत्तेजक, पुष्टिकारक तथा क्षुधावर्धक होता है। चर्मरोग से बचने के लिए वसंत ऋतु में इसे चबाया जाता है।

५. रंजक-निर्माण में
५.१ पुराने वृक्ष के तने व डालों से स्वच्छ आकाशीय रंग का गाढ़ा लासा निकलता है, उसे 'ईस्ट इण्डिया गम' कहा जाता है। उसका उपयोग सिल्क के धागों को रंगने के काम में होता है। इससे रंजक तैयार किया जाता है। यह भी एक क्षुधावर्धक पदार्थ है। यह गोंद वृक्ष का 'आँसू' कहलाता है। गोंद में शर्करीय खमीर होता है, जो स्वास्थ्यवर्धक होता है। यह ठंढ़े जल में घुल जाता है।
५.२ नीम छाल में लाल रंग का एक रंजक पदार्थ पाया जाता है, जो सिल्क धागों को रंगने के काम में आता है। इसमें १२ से १४ प्रतिशत तक टैनिंग द्रव्य पाये जाते हैं जो चर्मशोधन के काम में आते हैं। टूथपेस्ट के निर्माण में भी छाल के रस का प्रयोग होता है। इसके तन्तुओं से रस्सा भी बनाया जाता है, किन्तु वह आर्थिक दृष्टि से उपयोगी नहीं होता।

६. पशुचारा व खली के रूप में
६.१ चारे के अभाव में बकरी, ऊँट और साँढ़ नीम के पत्ते भी चबाकर संतुष्ट हो जाते हैं। आंध्रप्रदेश के किसान गाय, भैंस तथा बकरी को प्रसव के शीघ्र बाद से लगातार कुछ दिनों तक नीम पत्ती खिलाते हैं, ताकि दूध स्वच्छ और पूरी तरह उतरे। नीम पत्ती में १२ से १८ प्रतिशत तक क्रूड प्रोटीन, ११ से ३० प्रतिशत तक क्रूड फाइब्रे, ४५ से ६७ प्रतिशत तक नाइट्रोजन, ७ से १८ प्रतिशत तक राख, १ से ४ प्रतिशत तक कैल्सियम, ०.१ से ०.३ प्रतिशत तक फास्फोरस तथा २ से ६ प्रतिशत तक अन्य पदार्थ पाये जाते हैं।
६.२ नीम बीज (बीना छिलका उतारे) पेरने पर खली में १२-१९ प्रतिशत प्रोट्रीन होता है। नीम गिरी (छिलका उतारकर) पेरने पर खली में ३५ प्रतिशत प्रोटीन होता है। पहली स्थिति में १२ से १६ प्रतिशत तेल मिलता है। दूसरी स्थिति में ३० से ४५ प्रतिशत तेल मिलता है। दूसरी स्थिति में खली पशु चारे के लिए विशेष उपयोगी है। चारे में मिलाकर इसे खिलाया जाता है। शुरू में पशु उसे थोड़ा कम पसंद करते हैं, किन्तु आदत हो जाने पर चाव से खाते हैं। इससे पशुओं का स्वास्थ्य एवं वजन बढ़ता है। इसे मुर्गी, भेड़, सुअर, व्यायी हुई गाय तथा डेयरी के गोयों, भैंसों खिलाया जा सकता है। व्यायी हुई, अर्थात दूध देने वाली गाय, भैंस को देने से पहले ढाई लीटर पानी में ८ ग्राम कास्टिक सोडा के साथ नीम खली को उबालकर देने पर उसमें तिक्तता खत्म हो जाती है।


७. सौन्दर्य प्रसाधनो में
७.१ नीम पत्ती का उपयोग विभिन्न सौन्दर्य प्रसाधनों के निर्माण में भी किया जाता है। इसका निषेचन जर्मनी में हेयर लोशन बनाने के काम में भी आता है। इसके पानी का उपयोग सब्जियों तथा तम्बाकू के फसलों पर कीटनाशक रूप में और उपज वृद्धि के लिए किया जाता है। नीम का पाउडर भी भारत में सौन्दर्य प्रसाधन के निर्माण में काम आता है।
७.२ नीम बीज की खली पशुओं को खिलायी जाती है। इसकी तिक्तता कम करने के लिए इसे पानी में भिगोकर पानी को निथार लिया जाता है। नीम खली मुर्गीपालन के लिए भी उपयोगी है। यह क्षुधावर्धक तथा Vermicidal होता है।


८. औद्योगिक प्रयोजन में
नीम तेल रंग में पीला, स्वाद में कड़वा तथा लहसुन की गंध लिये होता है। अभी देश में जितना नीम तेल उत्पादित होता है, उसका करीब ८० प्रतिशत भाग सिर्फ साबुन बनाने के काम में आता है। इसके अतिरिक्त नीम तेल से शैम्पू, टूथपेस्ट, क्रीम, लोशन, केश तेल, नेल पालिश, राकेट ईधन आदि के निर्माण तथा वस्त्र एवं रबर उद्योग में किया जाता है। इससे म्यांमार (वर्मा) में मोमबत्ती बनायी जाती है। काठ गाड़ी का धूरा भी इससे चिकना किया जाता है। सिल्क एवं सूती वस्त्रों को गाढ़ा, पीला रंगने में भी यह तेल उपयोग में आता है। देश में प्रचलित मार्गो साबुन नीम तेल से ही बनता है। नीम को अंग्रेजी में मार्गोसा कहा जाता है।


९. अल्कोहल एवं मिथेन निर्माण में
नीम फल के गुदे में कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। इसका इस्तेमाल अल्कोहल (शराब) एवं मिथेन गैस के निर्माण में होता है। बीज का छिलका जलावन के काम आता है।


१०. छाया-विश्राम एवं सजावट के रूप में
नीम वृक्ष की छाया शीतल और उसकी हवा शुद्ध होती हैं। प्राय: सभी तरह के पशु-पक्षी इसकी छाया को बहुत पसंद करते हैं। तमाम उष्णकटिबन्धीय देशों में इसका रोपण छाया के लिए भी किया गया है, जिससे वहाँ के लोगों को जीने की ताकत मिली है। घरों के आस-पास, सड़कों के किनारे कतार में तथा पार्कों में लगाने पर यह अपनी सुनहरी हरीतिमा के कारण मनोरम दृश्य उपस्थित करता है। उत्तरी मलेशिया तथा पेनांग आदि द्वीपों में इसका रोपण इसी उद्देश्य से किया गया है। अफ्रीका तथा लैटिन अमेरिका के कई शहरों को सुन्दर बनाने के लिए भी नीम वृक्ष लगाये गये हैं। दिल्ली सरकार ने एक बार पूरी दिल्ली में नीम वृक्ष लगाने का निर्णय लिया था, ताकि सजावट के अतिरिक्त प्रदूषण-नियंत्रण एवं ताप-नियंत्रण में भी इसका उपयोग हो। सऊदी अरब में मक्का के पास दस वर्ग किलोमीटर में ५० हजार से अधिक नीम वृक्ष लगाये गये हैं, जिसका मूल मकसद यात्रियों को छाया प्रदान करना है। हालांकि उससे ताप-प्रदूषण रोकने में भी काफी सहायता मिली है। अफ्रीका के शुष्क क्षेत्रों में यह वृक्ष सबसे पहले सड़कों के किनारे सजावटी छायादार वृक्ष के रूप में ही लगाया गया था।


११. प्रदूषण-नियंत्रण एवं पर्यावरण संरक्षण में
११.१ वायुमण्डल में कार्बनडायआक्साइड (Co2),सल्फर डायआक्साइड (So2) तथा अन्य गैसों की मात्रा-वृद्धि के साथ वायु-प्रदूषण एवं ताप-प्रदूषण के खतरे उत्पन्न होते है। नीम वृक्ष इन घातक गैसों को सहन एवं हजम करने में बहुत तेज पाया गया है। इसके सघन पत्तों से आक्सीजन भी काफी मात्रा में उत्सर्जित होता है। शहरों में सघन आबादी, वाहनों की भीड़ तथा उद्योग-धंधों की जमघट से वायु प्रदूषण के गंभीर संकट उपस्थित हैं। ऐसे जगहों पर अन्य तरह के वृक्ष इन प्रदूषणों को उतना बर्दास्त नहीं कर पाते, जितना नीम वृक्ष। शहरों के तमाम सजावटी वृक्ष प्रदूषणों की मार से नष्ट हो जाते हैं। नीम यहाँ पर एक कारगर विकल्प है। इसकी प्रतिरोधी एवं अवशोषण क्षमता के कारण ही इसे वायु शुद्धिकारक (Air Purifier) कहा गया है। नीम की सघन वानिकी होने पर यह १० डिर्ग्री सेंटीग्रेड तापमान को कम कर सकता है और वार्षिक वर्षा १० से २० प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
११.२ नीम वृक्ष ध्वनि-प्रदूषण भी रोकने में काफी सहायक है। इसकी व्यापक वानिकी से ध्वनि-प्रदूषण से होने वाले विभिन्न रोगों, जैसे- मानसिक तनाव, अनिद्रा, बेचैनी, सिरदर्द, थकान, कार्य-क्षमता के ह्लास, बहरापन, कान के आन्तरिक भागों की क्षति, हृदय की धड़कन का बढ़ना, रक्तवाहिनियों का सिकुड़ना, रक्त-संचार में कमी, उच्च रक्तचाप, चिड़चिड़ापन, गैस्ट्रिक अल्सर, मस्तिष्क एवं नर्वस कोशिकाओं पर घातक प्रभाव, स्फूर्ति का घटना, प्रसव-पीड़ा का बढ़ना, गर्भस्थ शिशु पर बुरा प्रभाव आदि से काफी हद तक बचाव किया जा सकता है। वायु प्रदूषण से होने वाले रोग, जैसे-सिरदर्द, चक्कर, पेट में मरोड़, कब्ज, भूख न लगना, मस्तिष्क ज्वर, बच्चों में गुर्दे की बीमारी, मन्द बुद्धिता, स्नायु दुर्बलता, दृष्टिहीनता, आँख -गले में जलन, खाँसी, यकृत विकृति, प्रजन रोग आदि में भी नीम वृक्ष की वानिकी काफी गुणकारी है। प्रदूषित जल में अनेक प्रकार के सूक्ष्म जीव, विषाणु, जीवाणु, कवक, प्रोटोजोआ, कृमि आदि पाये जाते हैं, जो तमाम प्रकार के रोगों के जनक हैं। नीम वृक्ष जल-प्रदूषण रोकने में भी अत्यन्त सहायक है।


१२. फल-संरक्षण में
फलों की सुरक्षा के लिए बक्सों में नीम की पत्तियाँ रखी जाती हैं। इससे फल अधिक समय तक ताजा और निरोग बना रहता है।




१३. रोजगार वृद्धि में
नीम के व्यापक प्रचार के साथ शहरों में नीम के दातवन की माँग भी क्रमश: बढ़ती जा रही है। इसके रोजगार से गरीब व्यक्ति अच्छी आय कर सकता है। नीम बीजों का संग्रह, प्रशोधन तथा नीम पेराई और उत्पादों के व्यवसाय में भी तमाम लोगों को रोजगार मिला है। नीम पर आधारित अनेक प्रकार के लघु-कुटीर उद्योग स्थापित किये जा सकते हैं। इन उद्योगों में मशीन-निर्माण उद्योग भी हो सकते हैं, जैसे छिलका उतारने वाली मशीन (Decorticator), बीज/गिरी पेराई मशीन (Seed/Kurnel Crusher), चूर्ण बनाने वाली मशीन (Pulverizer) इत्यादी।

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