Saturday, November 28, 2009

सत्रह वर्षों बाद........ (Liberhan Commission Report)

सत्रह वर्षों बाद........
 
बरसों बाद ढही मस्जिद फिर
बरसों बाद गिरा मंदिर भी,
काले-सफ़ेद कोटों से घिर कर
दब गयीं तड़पती आवाजें भी |

कुछ काले-सफ़ेद कपडेवालों ने
मिल कर रौंदा मन के मंदिर को,
उनके पहले "भगवा" वालों ने
कुचला मस्जिद की दीवारों को |

कुचले जाने, रौंदे जाने के
बीच में बरसों बीत गए,
जीवित जो थे वो जिए नहीं
मारा जिसने वो जीत गए |

शर्मिंदा हूँ, मैं जिन्दा हूँ
इस देश का मैं बाशिंदा हूँ,
ना मुस्लिम हूँ, ना हिन्दू हूँ,
 फिर भी कैसे मैं जिन्दा हूँ!!!!


- राजेश अमरनाथ पाण्डेय
   १९ नवम्बर २००९

1 comment:

timeforchange said...

hi , nice poem , u r one of the few who r human , not Hindu , Muslim or Cristian . but that's not enough . there is bigger picture u must se that too .