Monday, May 14, 2007

एक जरूरी सलाह:राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम

राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने देश को महाशक्ति बनाने के इरादे से युवाओं को दूसरा स्वतंत्रता संग्राम शुरू करने की जो सलाह दी उसके अनुरूप तभी कोई काम हो पाएगा जब राजनीतिक दल उनके इस आह्वान के प्रति खास तौर पर दिलचस्पी दिखाएंगे। दुर्भाग्य से अभी तक के अनुभव को देखते हुए इसके आसार कम ही हैं कि राजनीतिक दल राष्ट्रपति की सलाह पर ध्यान देंगे। राष्ट्रपति ने लाल किले की प्राचीर से देश को वर्ष 2020 तक एक विकसित, मजबूत और खुशहाल राष्ट्र बनाने के लिए जिन पांच क्षेत्रों में विशेष ध्यान देने की बात कही उनका उल्लेख वह इसके पहले भी अनेक बार कर चुके हैं। वह देश के नाम अपने संदेश में भी राष्ट्र निर्माण के इस एजेंडे को विस्तार से प्रस्तुत कर चुके हैं, लेकिन इस कार्ययोजना के हिसाब से कोई ठोस काम होता हुआ नजर नहीं आ रहा है। ऐसा लगता है कि राजनीतिक दल राष्ट्रपति के भाषण पर केवल ताली बजाकर ही अपने कर्तव्य की इतिश्री करना चाहते हैं। अब तो स्थिति यह है कि वह उनके विचारों के अनुरूप बहस करने के लिए भी तैयार नहीं। पिछले दिनों उन्होंने दो दलीय लोकतांत्रिक प्रणाली पर ध्यान देने की जो सलाह दी वह अनेक राजनीतिक दलों को रास नहीं आई। भाकपा ने तो राष्ट्रपति के इस सुझाव को अनावश्यक और लोकतंत्र के लिए नुकसानदेह भी करार दिया। यद्यपि भाजपा और कांग्रेस ने इस मुद्दे पर बहस करने से इनकार नहीं किया, लेकिन उनका रवैया भी कोई बहुत उत्साहजनक नहीं। फिलहाल इस बारे में कुछ कहना कठिन है कि राष्ट्रपति के सुझाव के मद्देनजर दो दलीय व्यवस्था पर कोई सार्थक बहस की जा सकेगी। ऐसी स्थिति तब नजर आ रही है जब बहुदलीय व्यवस्था अस्थिरता और सौदेबाजी का पर्याय बन गई है। वर्तमान में गठबंधन राजनीति के जिस दौर को समय की मांग बताया जा रहा है वह राजनीतिक दलों की बढ़ती भीड़ का ही परिणाम है।

No comments: