Monday, May 14, 2007

दवाओं में मिलावट से जा रही हैं हजारों जानें

दवाओं में जहरीली चीजों की मिलावट से हजारों जानें जा रही हैं। ऐसा भारत ही नहीं, कई और देशों में भी हो रहा है। न्यू यॉर्क टाइम्स ने रविवार को छापी खबर में यह सनसनीखेज खुलासा किया। उसके मुताबिक, नकली पदार्थों के कारोबारी दवाओं और टूथपेस्ट समेत रोजमर्रा के काम आने वाली कई चीजों में जहरीले घोल (सॉल्वेंट) का इस्तेमाल कर रहे हैं।

रिपोर्ट कहती है कि सीरप में मिलाए जा रहे जहरीले पदार्थ डाइएथिलीन ग्लाइकॉल की वजह से भारत ही नहीं, बांग्लादेश, हैती, अर्जेंटीना, नाइजीरिया, पनामा और चीन जैसे देशों के हजारों लोग मौत की नींद सो रहे हैं। इस सॉल्वेंट का इस्तेमाल खांसी से लेकर बुखार की दवाओं और इंजेक्शन में भी किया जाता है।

आम तौर पर दवाओं, टूथपेस्ट और दूसरे प्रॉडक्ट में सॉल्वेंट के तौर पर ग्लिसरीन इस्तेमाल होती है, लेकिन मुनाफाखोर ग्लिसरीन के महंगे होने की वजह से सस्ते और जहरीले सॉल्वेंट का इस्तेमाल करते हैं। दोनों में इतनी समानता है कि असली-नकली का पता ही नहीं चल पाता।

यह पता नहीं चलता कि नकली दवाएं कहां बनाई जा रही हैं, लेकिन रेकॉर्ड्स दर्शाते हैं कि दवा के चार में से जिन तीन मामलों में जहर की मात्रा पाई गई, उन्हें चीन में बनाया गया है। चीन नकली दवाओं का प्रमुख स्त्रोत है। दुनियाभर में हो रही आलोचना के बाद चीन की सरकार ने अपनी फार्मा इंडस्ट्री में सफाई की प्रतिबद्धता जताई है। दिसंबर में ही घूस लेकर दवाओं को अप्रूव कर रहे दो आला रेग्युलेटरों को अरेस्ट किया गया।

बीते दो दशकों में दुनियाभर में रोजमर्रा की जिन आठ प्रमुख चीजों में जहर की मिलावट पाई गई, उनमें सीरप भी एक है। इस जानलेवा मुनाफाखोरी का हालिया शिकार पनामा रहा। रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल वहां के अधिकारियों से अनजाने में खांसी के सीरप की 2.60 लाख शीशियों में डाईएथिलीन ग्लाईकॉल मिल गई। नतीजा यह कि जहर से 365 लोगों की मौत हो गई, जिनमें से १०० की ही पुष्टि की गई। इन मौतों के लिए भी चीन जिम्मेदार है, क्योंकि वहां से ग्लिसरीन बताकर डाईएथिलीन ग्लाईकॉल एक्सपोर्ट किया गया था।

चीन से आयातित आटा अमेरिका में कई जानवरों की मौतों की वजह बना। इसके बाद एफडीए ने उसका आयात रोक दिया। बांग्लादेश में 1992 में कई बच्चों की मौत के बाद जांच की गई, तो बुखार की चर्चित दवाओं के 7 ब्रैंड में जहरीली मिलावट का पता चला। चीन में तैनात डब्ल्यूएचओ के डॉ. हेंक बेकडम इसे ग्लोबल प्रॉब्लम करार देते हैं। उनका मानना है कि इस समस्या से निपटने के लिए दुनियावी समुदाय को मिलकर काम करना होगा।

रिपोर्ट कहती है कि जहरीले सॉल्वेंट वाली चीजों के इस्तेमाल करने वाले ज्यादातर लोगों की किडनी फेल हुईं। कई बार नर्वस सिस्टम को नुकसान पहुंचा और उनको लकवा तक हो गया। मरीजों को सांस लेने में भी दिक्कत हो सकती है, जो ज्यादातर मौतों की वजह बनी।

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